Monday, March 28, 2016

वेद सार 37

विश्वानि देव सवितर्दुरित्तानि परा सुव। परा दुष्वप्न्यं सुव।।
                                                             शुक्ल यजुर्वेद :-30/3

भावार्थ :- 
विश्वानि - सविता
देव - देवता
सवितर्दुरित्तानि - समस्त पापों व तापों को
परा - दूर
सुव - करें
दुष्वप्न्यं - कल्याणकारी संतति व संपत्ति को

व्याख्या :- हे सविता देव आप हमारे समस्त पापों व तापों को दूर करें। कल्याणकारी संतति, गौ आदि पशु तथा अतिथि सत्कार परायण गृहादि जैसी संपत्ति को हमारी ओर उन्मुख करें।


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