Saturday, March 26, 2016

वेद सार 36

स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्ती पावमानी द्विजानाम।
आयु: प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविगम्।
ब्रह्मवर्चसं महा्रं दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकम।।
                                                                      अथर्ववेद :-19/71/1

भावार्थ :- 
स्तुता - स्तुति की है
मया - हमने
वरदा - मनोरथों को
प्रचोदयंती - परिपूर्ण करने वाली, प्रेरणा देने वाली
वेदमाता - वेद रूपी मां
पावमानी - पापों का शोधन करने वाली
द्विजानाम् - द्विजों को
आयु : - दीर्घायु
प्राणं - प्राणवान्
प्रजां - प्रजावान्
पशुं - पशुमान्
कीर्ति - तेजस्वी
द्रविणम् - धनवान
ब्रह्म वर्चसं - कीर्तिशाली
महा्रं - होने का
दत्वा - देकर ही
ब्रह्मलोकम - ब्रह्मलोक को
व्रजत - पधारें

व्याख्या :- 
हे पापों का शोधन करने वाली वेदमाता हम द्विजों को प्रेरणा दें। मनोरथों को परिपूर्ण करने वाली वेदमाता आज हमने स्तुति की है। मनोऽमिंलपित वरप्रदात्री यह माता हमें दीर्घायु, प्राणवान्, प्रजावान, पशुमान्, धनवान, तेजस्वी तथा कीर्तिशाली होने का आशीर्वाद देकर ही ब्रह्मलोक को पधारें।


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