Tuesday, March 22, 2016

नवग्रह देवता श्रृंखला-3

                  चंद्र देव

चंद्रदेव महर्षि अत्रि के पुत्र हैं। सोलह कलाओं से युक्त होने के कारण इन्हें सर्वमय कहा गया है। श्रीमद् भगवत् गीता के अनुसार चंद्र देव ही सभी देवता, पितर, मनुष्य, भूत, पशु, पक्षी, सरीसृप और आदि प्राणियों के प्राण का आप्यायन करते हैं। ब्रह्म देव ने चंद्रमा को बीज, ओषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बना दिया। प्रजापति दक्ष ने अश्विनी, भरणी सहित अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्र देव से कराया। ये 27 कन्याएं ही 27 नक्षत्र कहलाती है। (हरिवंश पुराण के अनुसार) इन नक्षत्र रूपी पत्नी के साथ चंद्रदेव परिक्रमा करते हुए प्राणियों के पोषण के साथ-साथ पर्व, संधियों एवं विभिन्न मासों का विभाजन करते हैं। महाभारत के अनुसार-पूर्णिमा को चन्द्रोदय के समय तांबे के बर्तन में मधुमिश्रित पकवान को यदि चंद्र देव को अर्पित किया जाय तो इससे इनकी तृप्ति होती है।


चंद्रमा का वर्ण श्वेत है। यह कर्क राशि के स्वामी हैं। इनका गोत्र-अत्रि है।
चंद्र परिवार :-इनकी कुल 27 पत्नियां है जो विभिन्न नक्षत्रों के नाम से जानी जाती हंै। इनका पुत्र बुध है जो तारा से उत्पन्न हुआ है।

मत्स्य पुराण के अनुसार-इनका वाहन रथ है। इस रथ में तीन चक्र होते हैं। रथ में 10 घोड़े जुते होते हैं। इनके नेत्र और कान भी गौर वर्ण का है। स्वयं चंद्र देव शंख के समान उज्जवल हैं। इनके एक हाथ में गदा तथा दूसरे हाथ वरदमुद्रा में है।
चंद्र के वक्र दृष्टि से :- अनिन्द्रा, कफ संबंधी रोग, पाचन संस्थान का बिगडऩा, अजीर्ण, ठंडक, बुखार, गठिया, मानसिक असंतुलन, पेट संबंधी बीमारियां आदि होने की संभावना रहती है।

चंद्र देव की शाति के लिए तांत्रिक मंत्र :- ऊँ ऐं ह्रींं सोमाय नम:।

चंद्र देव की शाति के लिए वैदिक मंत्र :- ऊँ इमं देवाऽअसपत्न र्ठ सुवध्वं महते क्षत्राय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्यै पुत्रम मुस्यै विष एष वोऽमीराजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना र्ठ राजा।।

जप संख्या :- 44 हजार। इसका दशांश 4400 तर्पण। इसका दशांश मार्जन 440 हवन करें।

रत्न :- मोती धारण सोमवार या पूर्णिमा की रात्रि। या खिडऩी की जड़ सोमवार प्रात:सफेद कपड़े में सफेद धागे से बांधकर 'ऊं सों सोमाय नम:Ó से अभिषिक्त कर धारण करें।

व्रत-सोमवार का व्रत या पूर्णिमा को उपवास करें।
चंद्रदेव की पूजा में श्वेत वस्तुओं, फूलों आदि का प्रयोग करें।

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