Tuesday, March 29, 2016

वेद सार 38

ऋषिर्हि पूर्वजा अस्येक ईशान ओजसा।
इन्द्रं चोष्कूयसे वसु।।
                                         ऋग्वेद:-5/8/17/41

भावार्थ :-
 ऋषि - सर्वज्ञ
हि - निश्चय से
पूर्वजा - सबके पूर्वजों के
असि - हो
एक: - अद्वितीय
ईशान - ईशानकत्र्ता, सबसे बड़े,
प्रलयोत्तर काल में रहने वाले
ओजसा - अनंतपराक्रम से युक्त
इंद्र - हे इंद्र महाराजाधिराज
चोष्कूयसे - दाता हो, अपने सबको कृपा कर रहे हो
वसु - सब धन के

व्याख्या :- 
हे ईश्वर। सर्वज्ञ और सबके पूर्वजों के अद्वितीय ईशानकत्र्ता तथा सबसे बड़े प्रलयोत्तरकाल में आप ही रहने वाले अनंत पराक्रम से युक्त हो।
   हे इंद्र महाराजाधिराज ,आप धन के दाता हो और इसका प्रवाह अपने सेवकों पर कर रहे हो। आप अत्यंत आद्र्रस्वभाव के हो।


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