बुध देव
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अथर्ववेद के अनुसार बुध देवता के पिता का नाम चंद्रमा और माता का नाम तारा है। वहीं श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार ब्रह्मा ने इनका नाम बुध इसलिए रखा कि इनकी बुद्धि बहुत ही गंभीर है। ये सभी शास्त्रों के परांगत, हस्तिशास्त्र के प्रवर्तक, सूर्य के समान तेजस्वी और चंद्रमा के समान कांतिमान हैं। जबकि मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने ब्रह्मर्षियों के साथ बुध देवता को पृथ्वी के राज्य पर अभिषिक्त किया और ग्रह भी बना दिया।
बुध परिवार :- बुध का विवाह मनु पुत्री इला के साथ हुआ। इला से पुरूरवा की उत्पत्ति हुई।
बुध ग्रह प्राय: मंगल ही करते हैं। किंतु जब ये सूर्य की गति का उल्लंघन करते हैं तब आंधी-पानी और सूखे की आशंका बन जाती है।
वाहन - इनका रथ श्वेत और प्रकाश से दिप्त है। इसमें वायु के समान वेग वाले पीले रंग के दस घोड़े जुते रहते हैं।
बुध देव की आकृति:- इनका रंग कनेर पुष्प की भांति पीला है। बुध पीले रंग की पुष्पमाला और वस्त्र धारण करते हैं। ये अपने चारो हाथों में क्रमश: तलवार, ढ़ाल, गदा और वरद मुद्रा धारण किए रहते है। ये सिंह की भी सवारी करते हैं।
बुध के अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता विष्णु हैं। इसीलिए इनका ध्यान इस मंत्र से करना चाहिए।
पीतमाल्याम्बरघर : कर्णिकारसमद्युति:। खड्गचर्मगदापाणि: सिंहस्थो वरदो बुध:।।
बुध की वक्र दृष्टि से :- दिमागी फितुर, नाक-कान की बिमारी, बात संबंधी रोग, पित्त रोग, चर्मरोग कोढ़, विष तथा गिरने आदि की संभावना बनती है।
बुध की वक्र दृष्टि से होने वाली पीड़ा से निवृति के लिए 27 या 108 बुधवार का व्रत करना चाहिए। गाय को हरा चारा खिलाना भी फायदेमंद होता है।
क्लेश निवारण हेतु वैदिक मंत्र :- ऊं उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूत्र्ते स र्ठ सृजेथामयं च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्यत्तुरस्मिन। विश्वे देवा यजमानश्च सीदत।।
क्लेश निवारण हेतु तांत्रिक मंत्र :- ऊॅ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नम:।
जप संख्या 36 हजार । इसका दशांश 3600 तर्पण। इसका दशांश 360 मार्जन हवण करें।
रत्न धारण - पन्ना या विधारा अथवा हरा मरगज की जड़ को विधि पूर्वक मंत्र से अभिषिक्त कर हरे कपड़े में हरे धागे में बांधकर बुधवार के दिन 10 बजे से पूर्व बांह पर बांधें। पन्ना की अंगुठी सोने मे बनवाएं और बुधवार को ही उपरोक्त विधि के अनुसार ही कनिष्ठा अंगुली में धारण करें।
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