Friday, March 25, 2016

वेद सार 35

स न : पितेव सूनबेऽग्ने सूपायनो भव। सचस्वा न : स्वस्तये।।
                                                                             यजुर्वेद :-3/ 34

भावार्थ - स: - आप
न : - हमारे लिए
पिता - करूणामय पिता
इव - जैसे
सूनवे - अपने पुत्रों को
अग्ने - हे विज्ञानस्वरूप पेश्वएग्ने
सूपायन - श्रेष्ठोपाय के प्रापक
अत्युत्तम स्थान के दाता
भव - सर्वदा हो
सचस्व - सदा सुखी रखो
स्वस्तये - हे स्वस्तिद परमात्मन सब दु:खों का नाश करके

व्याख्या :- हे विज्ञान स्वरूपेश्वराग्ने आप हमारे लिये सुख से प्राप्त श्रेष्ठोपाय के पापक, अत्युत्तम स्थान के दाता कृपा से सर्वदा हो तथा हमारे रक्षक भी आप ही हो। हे स्वस्तिद परमात्मन सब दुखों का नाश करके हमारे लिए सुख का वत्र्तमान सदैव कराओ जिससे हमारा वर्तमान श्रेष्ठ ही हो। 'स न: पितेव सूनवेÓ जैसे करूणामय पिता अपने पुत्र को सुखी ही रखता है, वैसे आप हमको सदा सुखी रखो, क्योंकि जो हमलोग बुरे होंगे तो उसमें आप की शोभा नहीं होना। किंचन संतानो को सुधारने से ही पिता की शोभा और बड़ाई होती है, अन्यथा नहीं।

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