Wednesday, March 2, 2016

तंत्र-मंत्र-यंत्र भाग-3

मनुष्य सदा विभिन्न परिस्थितियों में किसी भी कार्य को सिद्ध होते ही देखना चाहता है। यह उसकी मूल प्रकृति का हिस्सा है, क्योंकि निस्काम  कर्म करने वाले मनुष्य हैं ही कहां? जबकि श्रीमद् भागवत गीता में श्री कृष्ण ने कहा है निस्काम कर्म करो और
फल मुझ पर छोड़ दो। लेकिन आज के भौतिकवादी युग में ऐसा संभव है क्या? लेकिन मनुष्य करे भी तो क्या? भागम भाग के इस दौर में वह कभी भी अपने आपको सुरक्षित नहीं पाता है। ऐसे में मनुष्य कुछ ऐसे उपाय चाहता है जो उसे चहुंओर से सुरक्षित कर सके। तो प्रश्न उठता है कि ऐसा कोई उपाय है क्या? तो इसका जवाब है हां। वह क्या है इस बारे में मैं आपको तंत्र-मंत्र की तीसरी कड़ी में बताने जा रहा हूं :-

ऋग्वेद में मां भग्वती कहती है - 'अहं रूद्रेभिर्वसुभिश्चराम्य हमादित्यैरुत विश्वदेवै:।
अहं मित्रावरुणोभा बिभम्र्य हमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा।।Ó
                                                                                                            ऋग्वेद:-8/7/11
अर्थात मैं रुद्र, वसु, आदित्य और विश्वेदेवो के रूप में विचरती हूं। वैसे ही मित्र, वरुण, इंद्र, अग्नि और अश्विनी कुमारों के रूप धारण करती  हूं।
जबकि ब्रह्मसूत्र में कहा गया है 'सर्वोपेता तद्दर्शनातÓ अर्थात वह परा शक्ति सर्वसामथ्र्य से युक्त है, क्योंकि वह प्रत्यक्ष देखा जाता है। इस दृष्टि से मनुष्य मार्कण्डेय पुराण में वर्णित मेरे 32 नामों - ' दुर्गा, दुर्गार्तिशमनी, दुर्गापद्विनिवारिणी, दुर्गमच्छेदिनी, दुर्गसाधिनी, दुर्गनाशिनी, दुर्गत्तोद्धारिणी, दुर्गनिहन्त्री, दुर्गमापहा, दुर्गमज्ञानदा, दुर्गदैत्यलोकदवानला, दुर्गमा, दुर्गमालोका, दुर्गमात्मस्वरूपिणी, दुर्गमार्गप्रदा, दुर्गमविद्या, दुर्गमाश्रिता, दुर्गमज्ञानसंस्थाना, दुर्गमध्यानमासिनी, दुर्गमोहा, दुर्गमगा, दुर्गमार्थस्वरूपिणी, दुर्गमासुरसंहन्त्री, दुर्गमायुधधारिणी, दुर्गमाड्गी, दुर्गमता, दुर्गम्या, दुर्गमेश्वरी, दुर्गभीमा, दुर्गभामा, दुर्गभा, दुर्गदारिणी Ó  का पाठ करता है वह नि:संदेह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जाएगा। कोई भी मनुष्य यदि शत्रुओं से पीडि़त हो, दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो वह इस 32 नामों का पाठ   कर उससे मुक्त हो सकता है। जो भारी विपत्ति में पडऩे पर भी इस 'दुर्गाद्वात्रिशन्नाममालाÓ का एक लाख बार पाठ कर लेता है, स्वयं करता है या ब्राह्मणों से करवाता है वह सब प्रकार की विपत्तियों से मुक्त हो जाता है। वहीं अग्नि में मधुमिश्रित सफेद तिल से इन नामों का लाख बार हवन कर लेने से मनुष्य समस्त विपत्तियों, आपत्तियोंं से मुक्त हो सकता है। इस नाम माला का पुरश्चरण 30 हजार का है। पुरश्चरण पूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा संपूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता है। इतना ही नहीं अगर राजा भी उसका वध करने का आदेश दे दे अथवा किसी कठोर दंड का आज्ञा दे, या युद्ध में शत्रुओं से घिर जाए अथवा वन में हिंसक आदि पशुओं से घिर जाए तो ऐसे में मनुष्य अगर 108 बार मां दुर्गा के इस 32 नाम का पाठ कर ले तो वह उस भय से मुक्त हो जाता है। स्वयं दुर्गासप्तशती में कहा गया है कि विपत्ति के समय इसके समान भयनाशक दूसरा कोई उपाय नहीं है। लेकिन इसकी फल प्राप्ति के लिए आवश्यक है पूर्णत: देवी के प्रति शरणागति।

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