तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पति ध्यित्र्जिन्वमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पापुरदब्ध स्वतस्तये।।
यजुर्वेद- 25/18
भावार्थ:- तम्- उस परामात्मा को ईशानम्- समस्त जगत के स्वामी और ईशान उत्पादन करने की इच्छा करने वाला को
जगत:- चर जगत् का
तस्थुष: -अचर जगत का
पतिम्-पालन करने वाले को
धियम्- विज्ञान मय
जिन्वम्-तृप्तिकारक को
अवसे-अपनी रक्षा के लिए
हूमहे-अत्यंत स्पर्धा करते हैं(इच्छा से आह्वाहन करते हैं)
वयम्- हमलोग
पूषा- पोषणप्रद है
न: - हमारे लिए
यथा- जैसे
वेदसाम्- धन और विज्ञानों की
असत्- है
वृधे- वृद्धि का
रक्षिता- रक्षक
पायु: - पालक
अदब्ध: - हिंसारहित
स्वस्तये- निरूपद्रवता के लिये।
व्याख्या:- हे सुख और मोक्ष की इच्छा करने वाले जनो। उसे परामात्मा को ही हमलोग प्राप्त होने के लिए अत्यंत स्पर्धा करते हैं कि उसको हम कब मिलेंगे क्योंकि वह समस्त जगत का स्वामी है। चर और अचर दोनों प्रकार के जगत का पालनकर्ता वही है। विज्ञानमय, विज्ञानप्रद और तृप्रिकारक ईश्वर से अन्य कोई नहीं है। उसको अपनी रक्षा के लिए हम इच्छा से आह्वाहन करते हैं।
जैसे वह ईश्वर हमारे लिए पोषणप्रद है वैसे ही 'वेद - सामÓ धन और विज्ञानों की वृद्धि का रक्षक है तथा निरुपद्रवता के लिए हमारा पालक वहीं है और वह हिंसारहित है।
इसलिए हे मनुष्यो, ईश्वर जो निराकार है, सर्वानन्दप्रद है, उसको मत भूलो। बिना उसके कोई सुख का ठिकाना नहीं है।
पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पापुरदब्ध स्वतस्तये।।
यजुर्वेद- 25/18
भावार्थ:- तम्- उस परामात्मा को ईशानम्- समस्त जगत के स्वामी और ईशान उत्पादन करने की इच्छा करने वाला को
जगत:- चर जगत् का
तस्थुष: -अचर जगत का
पतिम्-पालन करने वाले को
धियम्- विज्ञान मय
जिन्वम्-तृप्तिकारक को
अवसे-अपनी रक्षा के लिए
हूमहे-अत्यंत स्पर्धा करते हैं(इच्छा से आह्वाहन करते हैं)
वयम्- हमलोग
पूषा- पोषणप्रद है
न: - हमारे लिए
यथा- जैसे
वेदसाम्- धन और विज्ञानों की
असत्- है
वृधे- वृद्धि का
रक्षिता- रक्षक
पायु: - पालक
अदब्ध: - हिंसारहित
स्वस्तये- निरूपद्रवता के लिये।
व्याख्या:- हे सुख और मोक्ष की इच्छा करने वाले जनो। उसे परामात्मा को ही हमलोग प्राप्त होने के लिए अत्यंत स्पर्धा करते हैं कि उसको हम कब मिलेंगे क्योंकि वह समस्त जगत का स्वामी है। चर और अचर दोनों प्रकार के जगत का पालनकर्ता वही है। विज्ञानमय, विज्ञानप्रद और तृप्रिकारक ईश्वर से अन्य कोई नहीं है। उसको अपनी रक्षा के लिए हम इच्छा से आह्वाहन करते हैं।
जैसे वह ईश्वर हमारे लिए पोषणप्रद है वैसे ही 'वेद - सामÓ धन और विज्ञानों की वृद्धि का रक्षक है तथा निरुपद्रवता के लिए हमारा पालक वहीं है और वह हिंसारहित है।
इसलिए हे मनुष्यो, ईश्वर जो निराकार है, सर्वानन्दप्रद है, उसको मत भूलो। बिना उसके कोई सुख का ठिकाना नहीं है।
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