मंगल देव
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार बाराह रूप धारी भगवान और पृथ्वी देवी के समागम से मंगल ग्रह का जन्म हुआ। इनका गोत्र भारद्वाज है। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल ग्रह के पूजन की बड़ी महिमा है। इस व्रत के लिए ताम्रपत्र पर भौमयंत्र लिखकर मंगल की सुवर्णमय प्रतिमा प्रतिष्ठापित कर पूजा का विधान है। व्रत के लिए जिस मंगलवार को स्वाति नक्षत्र मिले उसी में मंगलवार का व्रत शुरु करना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार , मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। मंगल को अशुभ ग्रह माना जाता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार मंगल ग्रह का वर्ण लाल है।
वाहन :- इनका वाहन सुवर्ण निर्मित रथ है। जिमें लाल रंग वाले घोड़े जुते रहते हे। रथ पर अग्नि से उत्पन्न ध्वजा लहराता रहता है। इस रथ पर बैठकर मंगल देवता कभी सीधी तो कभी वक्रगति से विचरण करते हैं।
स्वरूप :-भूमिपुत्र मंगल चतुर्भज रूप धारी हैं। इनके शरीर के रोयें भी लाल है। इनके हाथों में शक्ति, त्रिशूल, गदा और वरदमुदा्र है। इनका वस्त्र व माला भी लाल है।
मंगल की वक्र दृष्टि से :- गले की बिमारी, कंठ रोग, फोड़ा-फुंसी, रक्त विकार, गठिया का बुखार, आंखों की बिमारी, दौरा पडऩा, सिर दर्द ,दुर्घटना का भय, पारिवारिक उपद्रव, मुकदमें तथा न्याय में हानि, वैवाहिक जीवन में तनाव आदि की संभावना रहती है।।
मंगल की उपासना के लिए वैदिक मंत्र :- ऊॅ अग्निर्भूद्र्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपर र्ठ रेता र्ठ सि जिन्वति: ।
मंगल की उपासना के लिए तांत्रिक मंत्र :- ऊॅ हा्रीं श्रीं मंगलाय नम : ।
जप संख्या : 40 हजार। इनका दशांश 4000 तर्पण व इसका दशांश 400 मार्जन हवण करें।
मंगल देव का आह्वान मंत्र :- रक्तमल्याम्बरधर: शक्तिशूल गदाधर:। चतुर्भुज: रक्तरोमा वरद: स्याद् धरासुत:।।
मंगलवार का व्रत :- इसमें हनुमान जी का व्रत या सुंदरकांड का पाठ अति फलदायी होता है। पूजा में ध्यान रहे कि अधिकतर सामग्री का प्रयोग लाल रंग का ही हो। यथा लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, मंूगा की माला आदि।
रत्न धारण :- मूुंगा या फिर सौंफ की जड़ को विधान पूर्वक निकालकर गंगा जल से पवित्र करें। फिर उसे अभिषिक्त का लाल कपड़े में लाल धागे से बांधकर मंगलवार के दिन बाजू या गले में धारण करें। ध्यान रहें मूंगा या जड़ी का धारण जिस दिन मंगलवार कर स्वाति नक्षत्र रहे उसी में धारण करना अति उत्तम होगा।
अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊं भ्रौं भौमाय नम:।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार बाराह रूप धारी भगवान और पृथ्वी देवी के समागम से मंगल ग्रह का जन्म हुआ। इनका गोत्र भारद्वाज है। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल ग्रह के पूजन की बड़ी महिमा है। इस व्रत के लिए ताम्रपत्र पर भौमयंत्र लिखकर मंगल की सुवर्णमय प्रतिमा प्रतिष्ठापित कर पूजा का विधान है। व्रत के लिए जिस मंगलवार को स्वाति नक्षत्र मिले उसी में मंगलवार का व्रत शुरु करना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार , मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। मंगल को अशुभ ग्रह माना जाता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार मंगल ग्रह का वर्ण लाल है।
वाहन :- इनका वाहन सुवर्ण निर्मित रथ है। जिमें लाल रंग वाले घोड़े जुते रहते हे। रथ पर अग्नि से उत्पन्न ध्वजा लहराता रहता है। इस रथ पर बैठकर मंगल देवता कभी सीधी तो कभी वक्रगति से विचरण करते हैं।
स्वरूप :-भूमिपुत्र मंगल चतुर्भज रूप धारी हैं। इनके शरीर के रोयें भी लाल है। इनके हाथों में शक्ति, त्रिशूल, गदा और वरदमुदा्र है। इनका वस्त्र व माला भी लाल है।
मंगल की वक्र दृष्टि से :- गले की बिमारी, कंठ रोग, फोड़ा-फुंसी, रक्त विकार, गठिया का बुखार, आंखों की बिमारी, दौरा पडऩा, सिर दर्द ,दुर्घटना का भय, पारिवारिक उपद्रव, मुकदमें तथा न्याय में हानि, वैवाहिक जीवन में तनाव आदि की संभावना रहती है।।
मंगल की उपासना के लिए वैदिक मंत्र :- ऊॅ अग्निर्भूद्र्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपर र्ठ रेता र्ठ सि जिन्वति: ।
मंगल की उपासना के लिए तांत्रिक मंत्र :- ऊॅ हा्रीं श्रीं मंगलाय नम : ।
जप संख्या : 40 हजार। इनका दशांश 4000 तर्पण व इसका दशांश 400 मार्जन हवण करें।
मंगल देव का आह्वान मंत्र :- रक्तमल्याम्बरधर: शक्तिशूल गदाधर:। चतुर्भुज: रक्तरोमा वरद: स्याद् धरासुत:।।
मंगलवार का व्रत :- इसमें हनुमान जी का व्रत या सुंदरकांड का पाठ अति फलदायी होता है। पूजा में ध्यान रहे कि अधिकतर सामग्री का प्रयोग लाल रंग का ही हो। यथा लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, मंूगा की माला आदि।
रत्न धारण :- मूुंगा या फिर सौंफ की जड़ को विधान पूर्वक निकालकर गंगा जल से पवित्र करें। फिर उसे अभिषिक्त का लाल कपड़े में लाल धागे से बांधकर मंगलवार के दिन बाजू या गले में धारण करें। ध्यान रहें मूंगा या जड़ी का धारण जिस दिन मंगलवार कर स्वाति नक्षत्र रहे उसी में धारण करना अति उत्तम होगा।
अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊं भ्रौं भौमाय नम:।
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