Saturday, March 5, 2016

तन, मन और वाणी के उद्वेग को विराम देने का व्रत है महाशिवरात्रि

'वन्दे देवमुमापति सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम्।
वन्दे सूर्यशशाड्कविह्वनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिव शंकरम्।।Ó
सचमुच वगैर शिव की वन्दना किए मनुष्य देवाधिदेव के बारे में कहना, लिखना, बोलना तो दूर कुछ चिंतन-मनन भी नहीं कर सकता। उसमें इस अमोघ व्रत महाशिवरात्रि पर तो कदापि नहीं।
शिवरात्रि सच में मनुष्य के तन, मन और वाणी के उद्वेग को विराम देने का व्रत है। इसी दिन चाहे तो मनुष्य जागृत अवस्था में ही शिवत्व का ज्ञान चेतना जागृत कर प्राप्त कर सकता है। इस संबंध में आचार्य ओशो ने भी 'शिवसूत्रÓ के पांच महत्वपूर्ण तत्व बताए हैं।
1. चैतन्यमात्मा - अर्थात आत्मा चैतन्य है।
2. ज्ञान बंध: - ज्ञान बंध है।
3. योनिवर्ग: कलाशरीरम् - योनिवर्ग और कला शरीर है।
4. उद्यमो भैरव: - उद्यम ही भैरव है।
5. शक्तिचक्र संधाने विश्वसंहार - शक्तिचक्र के संद्यान से विश्व का संहार हो जाता है।
चूंकि शिव का मतलब केवल भगवान शिव ही नहीं है, बल्कि शिवनाम किसी नाम या रूप की सीमाओं से मुक्त है। सर्वप्रथम फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की मध्य रात्रि में ही भोलेनाथ लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इस तिथि को ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है। शिवलिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा उपरी भाग में महेश्वर विराजते हंै। साथ ही वेदी में भगवती अम्बिका विराजती हैं। इसलिए लिंग पुराण में कहा गया है कि शिवरात्रि व्रत के लिए पूजन, व्रतपालन और रात्रि जागरण तीनों आवश्यक है। स्वयं भगवान विष्णु ने कहा है-लिंग रूपाय,लिंगाय, लिंगानाम पतये नम:।
जो भी मनुष्य इस व्रत को करने की इच्छा रखता है उसे चाहिए कि उस दिन मन, कर्म और वचन की पवित्रता का संकल्प ले और स्नान के पश्चात शिव मंदिर या घर में ही आसन पर बैठकर गंगा जल से शरीर को पवित्र करें। फिर तीन बार 'आशुरेषे वज्ररेषे हूं फट स्वाहाÓ का उच्चारण करें। इसके उच्चारण से वह स्थान व आसन पवित्र हो जाता है जहां बैठकर आप भोलेनाथ की पूजा या ध्यान करेंगे।
तत्पश्चात शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से पवित्र करें। फिर भोलेनाथ पर गंगाजल, चंदन, भष्म, अबीर, कुमकुम, पुष्प, अक्षत, भांग, धतुर, आक, विल्वपत्र आदि से उनकी सांगोपांग पूजा करें।
ततुपरांत - 'मंदारमाला कुलितालकायै, कपाल मालांकित शेखराय। 
दिव्यां मंबरायै च दिगम्बराय, तस्मै वकाराय नम: शिवाय।Ó
 मंत्र पढ़कर एक साथ उमामहेश्वर का ध्यान कर आह्वान करें। यह मंत्र अद्र्धनारीश्वर रूप में उमामहामहेश्वर के आह्वान के लिए अति उत्तम है। इसके बाद रूद्र गायत्री मै 'ऊं भू भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गो रूद्र: प्रचोदयातÓ का जप कम से कम 11000 बार अवश्य करें। तत्पश्चात भगवान की कर्पूर जलाकर आरती करें।
रूद्र संहिता में कहा गया है कि जो भी साधक शिवरात्रि के दिन शिव की उपरोक्त तरीके से पूजा करेगा उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और वह सदा मन, वाणी और कर्म से पवित्र रहेगा और उसकी सदा उन्नति होगी।
  लेकिन ध्यान रहे कि कोई भी प्रार्थना, पूजा, पाठ, आराधना, मंत्र, स्त्रोत व स्तुतियों का फल तभी प्राप्त होता है जब आराधना विधि विधान और शास्त्रोक्त तरीके से की जाय। 

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