Wednesday, March 30, 2016

वेद सार 39


अहं रूद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवै:।
अहं मित्रावरूणोभा विभम्र्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा।।
                                                                    ऋग्वेद:-8/7/11

भावार्थ :- 
अहं - मैं
रूद्रे - रूद्र
वसुभि - वसु
महादित्यै - आदित्य
विश्वदेवै: - विश्वदेवों
मिश्चरा - विचरण करती हूं
मित्रा - मित्र
वरुणो - वरुण
मिन्द्रा- इन्द्र
अग्नि - अग्नि
अश्वि - अश्विनी कुमारों के रूप
नोभा- धारण करती हूं।


व्याख्या :- 
मैं रूद्र , वसु , आदित्य और विश्वेदेवों के रूप में बिचरती हूं। वैसे ही मित्र, वरूण, इंद्र, अग्नि और अश्विनी कुमारों के रूप को धारण करती हूं।

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