बृहस्पति देवता
-----------------------------------------------------बृहस्पति देव अंगिरा ऋषि के पुत्र हैं। यह देवताओं के गुरु हैं। ये अपनी शक्ति से रक्षोघ्न मंत्रों का प्रयोग कर दैत्यों को दूर भगा देवताओं को उनका यज्ञ भाग प्राप्त करा देते हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार बृहस्पति अपने अभ्युदय के लिए घोर तपस्या करने लगे। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ही भगवान भोलेनाथ ने इन्हें देवताओं के पूज्य गुरु और ग्रहत्व प्रदान किया। बृहस्पति प्रत्येक राशि पर एक-एक वर्ष रहते हैं। वक्र होने पर इसमें अंतर आ जाता है। बृहस्पति स्वयं सुन्दर हैं। ये विश्व के लिए वरणीय हैं। ये वांछित फल प्रदान कर संपत्ति और बुद्धि से भी संपन्न कर देते हैं। ये आराधकों को सन्मार्ग पर चलाते हैं और उनकी रक्षा भी करते हैं।
बृहस्पति देव का वर्ण :-मत्स्य पुराण के अनुसार इनका वर्ण पीत है। यह धनु व मीन राशि के स्वामी हें।
वाहन- इनका वाहन रथ है जो सोने का बना है। इसमें वायु के समान वेग वाले पीले रंग के 8 घोड़े जुते हैं।
आयुद्ध :- ऋग्वेद के अनुसार इनका आयुद्ध स्वर्णनिर्मित दण्ड है।
बृहस्पति देव का परिवार :-इनकी पहली पत्नी का नाम शुभा और दूसरी का तारा है। शुभा से सात कन्याएं हुई जबकि तारा से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुई। बृहस्पति के दो भाई हैं। बड़े भाई का नाम-उतथ्य और छोटे का नाम संवर्त है। इनकी एक बहन भी है जिसका नाम वरस्री है।
बृहस्पति के अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं। इनके चार हाथों में क्रमश: दण्ड, रूद्राक्ष की माला, कमण्डलु और वरद मुद्रा है।
गुरु बृहस्पति की वक्र दृष्टि से :-पेट में गैस रहना, बुखार, कान से मवाद गिरना, वायुयान दुर्घटना आदि की संभावना रहती है।
बृहस्पति देव का आह्वाहन मंत्र :-देवदैत्यगुरु तद्वत पीतश्वेतौ चतुर्भुजो।
दण्डिनौ वरदो कार्यों साक्षसूत्रकमण्डलू।।
वैदिक मंत्र :- ऊं बृहस्पतेऽअति यदर्याेऽअर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यदीदयच्छं वसऽऋतप्रजा तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
तांत्रिक मंत्र :- ऊं ऐं क्लीं बृहस्पतये नम:।
जप संख्या :-76 हजार। इसका दशांश 7600 तर्पण व इसका दशांश 760 मार्जन हवण करें। हवण में पीपल की लकड़ी का उपयोग अवश्य करें।
रत्न धारण :-पुखराज, उपरत्न टोपाज सोने में बनाकर गुरुवार के दिन तांत्रिक मंत्र से अभिषिक्त कर दोपहर बाद धारण करना चाहिए।
जातक रत्न के बदलें केले की जड़ या हल्दी की गांठ को भी पीले कपड़े में लपेटकर पीला धागा से बांधकर गंगा जल में धोएं और उपरोक्त मंत्र से अभिषिक्त कर दाहिने बाजू में (पुरूष) बाएं में महिला धारण करें।
व्रत :-गुरुवार को बृहस्पति देव की कथा सुनें और उपवास रखें। जो जातक उपवास नहीं रख सकते वह पूजा के बाद पीला भोजन करें।.